पाकिस्‍तान में गर्त में पहुंची आर्मी की प्रतिष्‍ठा, जाते-जाते बाजवा ने बताया सम्‍मान बढ़ाने का फॉर्मूला

रावलपिंडी: पाकिस्तान के निवर्तमान थल सेनाध्यक्ष (सीओएएस) का मानना है कि सेना के 'अराजनीतिक' रहने का फैसला उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने में मदद करेगा। जियो न्यूज के एक विशेष साक्षात्कार में जनरल बाजवा के हवाले से कहा, 'राष्ट्रीय निर्णय लेने में पाकिस्तानी सेना हमेशा एक प्रमुख खिलाड़ी रही है। देश की राजनीति में अपनी ऐतिहासिक भूमिका के कारण सेना को जनता और राजनेताओं की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।' जनरल मंगलवार को जनरल असीम मुनीर को सेना की कमान सौंपेंगे, जिन्हें पिछले हफ्ते सरकार ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया था। जनरल बाजवा 29 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। वह पहले भी कह चुके हैं कि सेना को राजनीतिक मसलों से दूर रहना चाहिए। आलोचना की बड़ी वजह जनरल बाजवा ने कहा, 'हालांकि यह निर्णय समाज के एक वर्ग द्वारा नकारात्मक रूप से देखा जा रहा है और व्यक्तिगत आलोचना का कारण बना है, लेकिन यह लोकतांत्रिक संस्कृति को फिर से मजबूत करने में मदद करेगा। राज्य के अंगों को प्रभावी ढंग से प्रदर्शन करने में सहायता करेगा। इन सबसे ऊपर यह निर्णय सेना की प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मदद करेगा दीर्घावधि।' निवर्तमान सेना प्रमुख ने कहा कि पूरे देश के इतिहास में सेना ने पाकिस्तानी राष्ट्र का बेजोड़ सम्मान और विश्वास हासिल किया है। ' जनता का समर्थन उन्‍होंने कहा, 'पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास में सेना की सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका को हमेशा जनता का अटूट समर्थन मिला है। मेरा मानना है कि जब सेना को राजनीतिक मामलों में शामिल देखा जाता है तो सशस्त्र बलों के प्रति जनता का समर्थन और आत्मीयता कम हो जाती है। इसलिए राजनीति की अनिश्चितता से पाकिस्तानी सेना को बचाना बुद्धिमानी है।' उन्होंने आश्वासन दिया कि बड़े पैमाने पर प्रचार के माध्यम से सशस्त्र बलों की कुछ आलोचना और अनुचित निंदा के बावजूद और झूठे आख्यानों को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया, संस्था अपनी गैर-राजनीतिक भूमिका के लिए प्रतिबद्ध रहेगी। पहले भी कही ऐसी बात जनरल बाजवा का यह बयान ऐसे समय में आया है जब हाल कि दिनों में सेना ने कहा है कि वह राजनीतिक मसलों से दूर रहेगी। पाकिस्‍तान की सेना पर हमेशा किसी न किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन करने के आरोप लगते रहते हैं। जनरल बाजवा ने 23 नवंबर को अपने आखिरी विदाई भाषण में भी कुछ इसी तरह की बात कही थी। उन्‍होंने कहा कि सेना ने जिस तरह से पिछले 70 सालों से देश की राजनीति में 'असंवैधानिक' हस्‍तक्षेप किया है, उसकी वजह से उसे खासी आलोचना का सामना करना पड़ा है।


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