अपनी कब्र खुद खोद रही दिल्ली! कचरे से एनर्जी प्लांट पर आई होश उड़ाने वाली हकीकत

नई दिल्ली : द न्यूयॉर्क टाइम्स में शनिवार को पब्लिश एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के ओखला में कचरे से एनर्जी (डब्ल्यूटीई) प्लांट एरिया के दस लाख लोगों को कैडमियम, सीसा, आर्सेनिक और अन्य घातक पदार्थों से युक्त अत्यधिक जहरीले उत्सर्जन के संपर्क में ला रहा है। यहां तक कि संयंत्र से निकलने वाली राख में भी खतरनाक प्रदूषक होते हैं, जिन्हें पड़ोस के एक रिहायशी इलाकों में फेंक दिया जाता है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि दिल्ली अपने लोगों के लिए खुद ही मानो कब्र खोद रही है। पांच साल की जांच के बाद जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि प्लांट प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करना जारी रखे हुए हैं। इस क्षेत्र में बीमारी का कारण बन गया है। प्लांट, तिमारपुर ओखला वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड, को अक्सर 'ग्रीन मॉडल' के रूप में बताया जाता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिंदल समूह, जो एमसीडी के साथ पीपीपी मोड में यूनिट चलाता है, विडंबना यह है कि ऑपरेशन से कार्बन क्रेडिट अर्जित करना जारी रखे है।

जहरीली राख के ऊपर स्कूल ग्राउंड, पार्क

NYT ने 2019 से 2023 तक प्लांट के आस-पास और डंपिंग साइट से 150 वायु और मिट्टी के नमूने एकत्र किए, और न केवल खतरनाक धातुएं पाईं, बल्कि डाइऑक्सिन जैसे स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों की स्वीकार्य मात्रा से 10 गुना अधिक मात्रा भी पाई। इसने यह भी पाया कि एक स्कूल का मैदान और एक पार्क जहरीली राख के ठीक ऊपर बैठे थे। NYT ने स्वतंत्र लैब में जिन सैंपल की जांच की, उनमें कैडमियम पाया गया, जो आमतौर पर बैटरियों में पाया जाता है, जो अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी की तरफ से निर्धारित मानक से 19 गुना अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके लंबे समय तक संपर्क में रहने से किडनी, फेफड़े और हड्डियों की बीमारियां हो सकती हैं।

राख में चार गुना अधिक कैडियम

रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि प्लांट के कर्मचारियों को प्रदूषण बोर्ड की तरफ से की जाने वाली जांच के बारे में पहले ही बता दिया गया था। इससे उन्हें सुधारात्मक उपाय करने का समय मिल गया। इसने प्लांट के भूतपूर्व कर्मचारियों के हवाले से कहा कि उन्हें प्रदूषण बोर्ड की तरफ से सूचित किया गया था कि वे आ रहे हैं। उन्होंने उत्सर्जन को कम करने के लिए आवश्यक उपाय करना शुरू कर दिया। NYT ने कहा कि जहरीली राख को लोगों के पास फेंका जा रहा था, जो सरकार की नियामक एजेंसियों द्वारा निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन है। उदाहरण के लिए, खड्डा कॉलोनी में, जहां राख फेंकी जाती है, कैडमियम का स्तर EPA सीमा से लगभग चार गुना अधिक था।

कंपनी ने नहीं दिया कोई जवाब

प्लांट का ऑपरेशन करने वाली जिंदल ग्रुप की एक यूनिट तिमारपुर ओखला वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की तरफ भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिला। एमसीडी के एक अधिकारी ने कहा कि इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। फिर भी, इस बात पर जोर दिया जाता है कि प्लांट को चलाने के लिए सभी वैधानिक मंजूरी प्राप्त कर ली गई है। यह मामला एनजीटी के समक्ष भी था, जिसने इसके संचालन के लिए मंजूरी दे दी। कहा गया कि प्लांट ने अपने ऑपरेशन में बेस्ट प्रैक्टिस को अपनाया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, दिल्ली सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमिशन ने भी टाइम्स ऑफ इंडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया।

पहले भी छप चुकी हैं खबरें

हमारे सहयोग अखबार TOI पिछले कई सालों से प्लांट की वजह से होने वाले प्रदूषण संकट और यह कैसे नॉर्म्स का पालन करने में विफल रहा है, इसके बारे में बताता रहा है। फरवरी 2017 में, NGT ने मानकों को पूरा न करने के लिए प्लांट पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। अगस्त 2021 में, ओखला, नरेला-बवाना और गाजीपुर में तीन कचरे से एनर्जी प्लांट पर निर्धारित पर्यावरण मानदंडों को पूरा न करने के लिए DPCC की तरफ से 5-5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।


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