चीन के दबाव में टीटीपी पर हमले शुरू किए तो फंसेगा पाकिस्तान, भड़क सकती है पाक जनता, एक्सपर्ट ने बताया खतरा
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इस्लामाबाद: पाकिस्तान आतंकी संगठनों, खासतौर से टीटीपी के खिलाफ एक नई लड़ाई की तैयारी कर रहा है। बीते कुछ महीनों में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की ओर से हुए हमलों का हवाला देते हुए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री प्रमुख ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने जवाबी हमलों की बात कही है। हाल ही में एक इंटरव्यू में आसिफ ने टीटीपी को धमकाते हुए कहा कि हम उन्हें केक और पेस्ट्री नहीं खिलाएंगे। अगर हमला हुआ तो हम भी जवाबी हमला करेंगे। उन्होंने पहली बार 2021 में अफगानिस्तान में टीटीपी शिविरों पर हुए ड्रोन हमलों के लिए पाकिस्तान की जिम्मेदारी भी स्वीकारी है। आसिफ ने भले ही टीटीपी के लिए कड़ा रुख दिखाया है लेकिन पाकिस्तान के लिए एक बार फिर से सीमा पर ड्रोन हमले करना आसान नहीं होगा। ऐसा कोई अभियान छेड़ने से पहले उसे एंटी टेरर ऑपरेशन के खिलाफ जन विरोध पर काबू पाना होगा। खासतौर से सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों में का गुस्सा इससे भड़केगा, जो किसी भी लड़ाई से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट की रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सैन्य अभियान चलने की स्थिति में खैबर पख्तूनख्वा के लोगों को 2007 से 2016 की तरह सामूहिक रूप से विस्थापित होने का डर है। उस समय पाक सेना और टीटीपी के संघर्ष ने बड़ी संख्या में लोगों के घर और रोजगार खत्म कर दिए थे। ऐसा में किसी भी एंटी टेरर ऑपरेशन की बात आम लोगों को डराती है। पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने हालांकि कई बार लोगों को भरोसा दिया है कि आम जनता को नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। पीएम शरीफ के अलावा रक्षा मंत्री आसिफ ने भी इस बात पर जोर दिया है कि इस बार बड़े पैमाने पर हमले की जरूरत नहीं होगी। उनका कहना है कि टीटीपी अब पाकिस्तान की जमीन से अपनी गतिविधि नहीं चला रहा है। उनका कहना है कि इस बार ऑपरेशन खुफिया तरीके से ज्यादा चलेगा। उन्होंने विपक्षी दलों और जनता को आश्वस्त करने का प्रयास किया है कि ऑपरेशन के बारे में उनकी चिंताएं निराधार हैं।
केपी के राजनेताओं के दावे अलग
पाक सरकार का दावा है कि टीटीपी की गतिविधियां पाकिस्तान की जमीन से नहीं चल रही है लेकिन इस दावे को केपी के राजनेताओं और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता और एमएनए मौलाना फजलुर्रहमान ने ही झुठला दिया है। फजलुर्रहमान ने कहा है कि अफगानिस्तान सीमा के लगे इलाकों में पुलिस भी अंधेरा होने के बाद चौकियों से नहीं निकलती है। उन्होंने कहा कि टीटीपी के लोग वाहन चालकों से जबरन टोल वसूल रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि टीटीपी अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर है। इस ग्रुप ने केपी के ज्यादातर जिलों में अपनी उपस्थिति बना रखी है। खासतौर से अफगानिस्तान सीमा से लगे जनजातीय जिलों के साथ-साथ डेरा इस्माइल खान सहित दक्षिणी जिलों और उत्तरी दीर और स्वात जिलों में स्थिति सबसे खराब है। पाकिस्तान की सरकार इस समय चीन के दबाव में नजर आ रही है। चीन ने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान को फटकार लगाते हुए आतंकी संगठनों पर लगाम कसने को कहा है। पाकिस्तान का नया एंटी टेरर ऑपरेशन का ऐलान भी चीन के दवाब में ही किया गया है। सुरक्षा विश्लेषक इफ्तिखार फिरदौस कहते हैं कि पाकिस्तान के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। चीन की ओर से सुरक्षा पर आए बयानों को बड़े इशारे की तरह देखा जाना चाहिए। फिरदौस का मानना है कि अफगानिस्तान में टीटीपी के ठिकानों पर और हवाई हमलों की धमकियों के बावजूद तालिबान शासन के साथ पाकिस्तान की पिछले दरवाजे की कूटनीति चल रही है। इस्लामाबाद टीटीपी को संचालन के लिए जगह न देने के लिए कूटनीति और सैन्य दबाव के मिश्रण का उपयोग कर रहा है।केपी के पूर्व सीनेटर और वामपंथी नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के मेंबर अफरासियाब खट्टक नए सैन्य अभियान पर कहते हैं, केपी में जनता ने सीख लिया है कि इस तरह के अभियान आतंकवाद को खत्म करने की बजाय विस्तार की ओर ले जाते हैं। पहले भी जिन संगठनों के खात्मे की बात की गई, वो ज्यादा मजबूत हो गए हैं। पाकिस्तान सरकार और आर्मी को भी ये अहसास है कि इन अभियानों का उल्टा असर हो सकता है। इसके बावजूद इस्लामाबाद के पास नीतिगत फैसलों और तनावपूर्ण क्षेत्रीय रिश्तों के बोझ के कारण सीमित विकल्प हैं। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान इसलिए भी खुद को मुश्किल स्थिति में पाता है क्योंकि अपने आस-पास के हालात को नियंत्रित नहीं करने के लिए उस पर सवाल उठते हैं।from https://ift.tt/WzqEU9i
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