अंग्रेजों के जमाने से वकील... 225 साल से वकालत करने वाला खानदान, यूपी के इस परिवार को जान दंग रह जाएंगे
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गाजीपुर: वकीलों का एक ऐसा परिवार जिसने अलग ही कीर्तिमान बनाया है। इस परिवार खासियत ये है कि यहां वकालत का पेशा लगभग 225 वर्षो से अब तक कायम है। पेशे से वकील और गाजीपुर के इतिहास लेखक उबैदुर्रहमान सिद्दीकी इसी परिवार से आते हैं। पिछले 2 शताब्दी से ज्यादा वक्त से उनके घर में हो रही वकालत की परंपरा को जानने के लिए एनबीटी ऑनलाइन की टीम ने सिद्दीकी से संपर्क किया। उन्होंने ब्रिटिश पीरियड से लेकर अब तक के वकालती व्यवस्था पर एनबीटी ऑनलाइन से खुलकर बातचीत की। रहमान ने बताया कि गाजीपुर में मुल्की (देश की) अदालतें 1787 से वजूद में आयी। उनके परिवार में वकालत के पेशे से जुड़े कई वकील हुए हैं। किसी ने चकबंदी और कुछ ने सिविल में वकालत को वरीयता दी है। उनके परिवार के वकीलों ने क्रिमिनल प्रैक्टिस में भी खूब शोहरत हासिल की। गाजीपुर से 1879 में अलग होकर बलिया जिला वजूद में आया। इससे पहले बलिया के लोग भी न्यायिक कार्यो के लिए गाजीपुर ही आते थे।
ब्रिटिश काल में कैसे होती थी वकालत?
सिद्दीकी ने बताया तत्कालीन गाजीपुर में तीन तरीके से अदालतों में वकील होते थे। एक वह जो कक्षा आठ पास मुख्तार होते थे। जिन्हें सीमित मालियत के भीतर मुकदमा लड़ने की अनुमति होती। दूसरे वकील जिन्हें जिला जज अथवा सब-जज की अनुमति से केवल जनपद के अंदर की तहसील अथवा अदालतों में वकालत करने की अनुमति थी। तीसरे वह जो प्लीडर, जिन्हें हाईकोर्ट की अनुमति से जनपद की अदालतों के अलावा दूसरे जनपदों में भी जाकर वकालत की अनुमति प्राप्त थी। लेकिन अब उनकी जगह एडवोकेट होने लगे हैं। उन्हें अदालतों में प्रैक्टिस के लिए बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश अथवा बार काउंसिल ऑफ इंडिया में एनरोल कराना पड़ता हैं।आगरा और इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस
सिद्दीकी के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिशकाल में जनपद में अनेक नामी गिरामी वकील थे। जो आगरा हाईकोर्ट या फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट जाकर प्रैक्टिस करते थे। उन्हीं वकीलों में से एक वकीलों का परिवार प्रकाश टाकीज के पास मुहल्ला मच्छरहट्टा की समद मंजिल कोठी में रहता आ रहा है।समद कोठी में रहने वाला परिवार
उबैदुर्रहमान सिद्दीकी का ही परिवार है। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल से अनेक नामी गिरामी वकील इस कोठी में रहते थे। सिद्दीकी के अनुसार उनके परिवार के लोग वकील के तौर पर गाजीपुर के अलावा बनारस, आगरा तथा इलाहाबाद की अदालतों में जाकर वकालत किया करते थे। इनमे अधिकतर लोगो की शिक्षा दीक्षा देश विदेश के उच्च संस्थानों में विशेषकर इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, आगरा के अलावा फ्रांस, जर्मनी तथा लंदन में हुई थी।उनमें अधिकतर प्लीडर अथवा बैरिस्टर थे।गाजीपुर से संबंधित जितने गैजटियर्स हैं। उनमें वकीलों के इस परिवार के बारे में दर्ज हैं। जब अदालत गाजीपुर में न होकर बनारस में थी। तबसे यह परिवार वकालत के पेशे से जुड़ा हैं।लंदन से बार एट ला की डिग्री
सिद्दीकी ने आगे बताया कि उनके परिवार में मौलवी अब्दुल समद हुए है। उनकी कोठी (घर) का नाम इन्हीं के नाम पर है। समद जिला के नामचीन वकीलों में से रहे है। वह 1842 से 1903 के बीच वकालत करते रहे। उन्हें स्थानीय अदालत में वकालत करने के साथ ही आगरा हाईकोर्ट में भी मुकदमों की पैरवी करने का तजुर्बा था। वह स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें शायरी का भी शौक था। वह तत्कालीन उर्दू के प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब के शागिर्द भी थे। समद के लड़के बैरिस्टर मुहम्मद याहिया थे। जिन्होंने फ्रांस से ग्रेजुएट की डिग्री लेकर लंदन से बार एट ला की डिग्री प्राप्त की। याहिया ने कुछ दिन क्रिमिनल की वकालत गाजीपुर की अदालत में की। आगे चलकर राजा ग्वालियर स्टेट के हाईकोर्ट में जज बनकर चले गए।पिता 1953 से अबतक वकालत के पेशे में
इनके अतिरिक्त सिद्दीकी के पिता अख्तर उस्मान , वकील 1953 से अबतक वकालत के पेशे में है। हालांकि स्वास्थ्य कारणों से अब वह कचहरी कम ही जा पाते हैं अख्तर उस्मान के दादा शेख आबिद अली कोरंटाडीह की मुंसफी में सिविल के वकील थे। उनके छोटे भाई मौलवी मोहम्मद सिद्दीक साहब मुंसफी कासिमाबाद में वकालत करते थे, जिनके तीन बेटों में दो वकालत पेशे से जुड़े। जो आगे चलकर वरीयता के आधार पर मुंसिफ और जिला जज हुए। शेख आबिद अली के पोते मौलवी मोहम्मद फारूक जिन्होंने अपनी वकालत 1931 से 1996 तक की। मुंसफी कोरंटाडीह, मुहम्मदाबाद मुंसफी के साथ ही गाजीपुर कोर्ट में भी वकालत किये। शहर के बड़े ईमानदार वकीलों में उनका एक नाम आता है।स्वतंत्रता सेनानी से वकालत तक का सफर
सिद्दकी बताते है कि मदरसा चश्मय रहमत ओरिएंटल कॉलेज की नीव 1869 में मौलवी रहमतुल्लाह फिरंगीमहली ने शहर में रखी थी। उनके परिवार के मौलवी मोहम्मद समी और शफी भी उसके संस्थापकों में एक थे। यह दोनो जिला के नामचीन प्लीडर यानी वकील थे।सिद्धकी ने आगे बताया कि इनलोगों के अलावा उनके परिवार में वकील मौलवी अब्दुल अजीम हुए है। जो एक स्वतंत्रता सेनानी रहे है। साथ एक अच्छे सिविल के वकील भी वह रहे है। उन्होंने 1881 से 1938 के बीच वकालत की। अजीम जनपद के नामचीन स्वतंत्रता आंदोलनकारी थे।। मौलवी अब्दुल अजीम ने 1898 में समद मंजिल, मच्छरहट्टा के अहाते में (लेखक का घर है) एमएवी स्कूल की स्थापना की। जो अब एमएचएच इंटर कॉलेज है। उनके बेटे अब्दुल अलीम ने पीएचडी जर्मनी से की थी। वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उपकुलपति हुए।225 वर्षों से परिवार में कायम वकालत
सिद्दीकी ने बताया कि उनके घर की वकालत की पारिवारिक परंपरा को निभाते हुए। उन्होंने भी इलाहाबाद विश्विद्यालय से वकालत की डिग्री 1987 में प्राप्त किया। उत्तरप्रदेश बार काउंसिल लखनऊ से रजिस्ट्रेशन कराया। गाजीपुर की दीवानी अदालत में अपने दादा मौलवी फारूक साहब वकील तथा पिता अख्तर उस्मान वकील के सानिध्य में रहकर वकालत की है। देखा जाए तो यह पेशा अब भी 225 वर्षों से उनके परिवार में कायम हैं। उन्हें उम्मीद है आगे भी जारी रहेगा।from https://ift.tt/hk5oSTD
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