गाजीपुर में गली के गुंडे से जरायम की दुनिया का बादशाह बना मुख्‍तार अंसारी, टिकट ब्लैकियर के रूप में शुरुआत

विकास पाठक, वाराणसी: अपनी मनमर्जी और बेखौफ तरीके से वारदात को अंजाम देने के लिए कुख्‍यात माफिया मुख्‍तार अंसारी के जरायम जगत के सफरानामे की शुरुआत गाजीपुर में गली के गुंडे की तरह ही हुई थी। क्षेत्र के लोगों में वर्चस्व जमाने की शुरुआत उसने सिनेमा घर के बाहर टिकट ब्लैक करने से की थी। अपने बड़े भाई को साइकल स्टैंड का ठेका दिलाकर धौंस जमाने वाला मुख्तार धीरे-धीरे बराह जरायम रेलवे, कोयला रैक, स्क्रैप, मोबाइल टावरों पर डीजल आपूर्ति, मछली व्यवसाय से लेकर सड़क, नाले-नाली, पुल तक के सभी व्यावसायिक ठेकों पर अपने लोगों को काबिज करवाने लगा था। मुख्तार अंसारी की बादशाहत का आलम यह था कि पूर्वांचल में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का ठेका लेने में देशी-विदेशी कंपनियों ने किनारा कर लिया था। अचूक निशानेबाज और क्रिकेट का बढ़िया खिलाड़ी रहे मुख्‍तार जमींदार घराने का भले ही रहा, मगर पैसे और वर्चस्‍व के लिए उसने अपराध की दुनिया में बादशाहत कायम की। अपराधों को ढकने के लिए मुख्‍तार राजनीति की जमीन पर उतरा तो 1996 में पहली बार बसपा के टिकट पर मऊ सदर विधानसभा का चुनाव जीता था। इसके बाद वह जेल में रहते हुए भी राजनीति में सक्रिय रहा। मुख्‍तार ने साल 2022 के विधानसभा चुनाव में खुद चुनाव न लड़ अपने बेटे को विरासत सौंपी थी।

37 साल का आपराधिक इतिहास

मुख्तार अंसारी का आपराधिक इतिहास लगभग 37 साल का है। मुख्तार अंसारी के खिलाफ वर्ष 1978 में पहली बार आपराधिक धमकी के आरोप में गाजीपुर के सैदपुर थाने में एनसीआर दर्ज की गई थी। उस समय उसकी उम्र लगभग 15 वर्ष रही होगी। इसके बाद लगभग आठ वर्ष तक उसका नाम किसी भी आपराधिक घटना में सामने नहीं आया। वर्ष 1988 में मुख्तार का नाम मुडि़यार गांव के दबंग प्रभाव वाले सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में सामने आया और मुहम्मदाबाद थाने में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इसके बाद जरायम जगत में मुख्तार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वाराणसी के अवधेश राय हत्‍याकांड, कपिलदेव सिंह हत्‍याकांड, कोयला व्‍यापारी और विश्‍व हिन्‍दू परिषद के नेता नंद किशोर रूंगटा का अपहरण व हत्या, मन्ना सिंह हत्याकांड, राम सिंह मौर्य व सिपाही सतीश कुमार हत्याकांड, कृष्णानंद राय हत्याकांड और मऊ दंगे जैसे प्रदेश और देश की चर्चित घटनाओं में मुख्तार का नाम सामने आता रहा। इनमें से कई मामलों में मुख्तार अंसारी को अदालत से राहत मिली तो बीते डेढ़ साल में आठ मामलों में सजा हुई। वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने दो मामलों में मुख्‍तार को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

माफिया डॉन ब्रजेश सिंह से हुई दुश्‍मनी

1990 में गाजीपुर समेत आसपास के जिलों के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्‍जा शुरू किया तो मुख्‍तार अंसारी गैंग से सामना हुआ। यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ दुश्‍मनी शुरू हुई तो गैंगवार में कई जाने गईं। 1991 में चंदौली में मुख्तार पुलिस की पकड़ में आया, लेकिन रास्ते में दो पुलिसवालों को गोली मारकर फरार हो गया था। इसके बाद उसने सरकारी ठेके, शराब के ठेके, कोयला के काले कारोबार को हैंडल करना शुरू किया। 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले में उनका नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया तो 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी रुंगटा के अपहरण के बाद उनका नाम क्राइम की दुनिया में देश में छा गया था।

खेली लंबी राजनीतिक पारी

मुख्‍तार ने साल 1996 में पहली बार बसपा के टिकट पर मऊ सदर विधानसभा का चुनाव जीता था। 2002 और 2007 में निर्दलीय चुनाव जीत मुलायम सिंह का करीबी बना तो मायावती की सत्ता में वापसी के साथ वह फिर बसपा में शामिल हो गया था। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने मुख्‍तार को वाराणसी लोकसभा सीट से उतारा तो मुकाबले में रहे भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी बड़ी मुश्किल से चुनाव जीत पाए थे। इस दौर में सपा व बसपा सरकार में मुख्‍तार का जलवा रहा। मुख्तार और उसके दोनों भाइयों को 2010 में बसपा ने निष्कासित कर दिया था।


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