Explained: मराठा आरक्षण की जिस परीक्षा में फडणवीस हुए थे फेल, क्या CM शिंदे हो पाएंगे पास?

मुंबई: 2024 लोकसभा चुनावों के बाद 30 जून को महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री के तौर पर दो साल पूर करेंगें। लोकसभा चुनावों से पहले शिंदे के सामने जो बड़ी चुनौतियां थी, उनसे वो बखूबी निपट चुके हैं उनके गुट पर असली शिवसेना की मुहर है और 10 फीसदी मराठा आरक्षण बिल को उन्होंने विधानमंडल के दो सदनों से पास कर लिया है। इस सब के बीच सवाल खड़ हो रहा है क्या मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मराठा आरक्षण की परीक्षा में देवेंद्र फडणवीस से आगे निकल जाएंगे। देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली सरकार ने भी 2018 में आरक्षण दिया था। जिसे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने आरक्षण को बरकरार रखा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पलट दिया था। सीएम एकनाथ शिंदे ने मौजूदा 10 फीसदी आरक्षण के बरकरार रहने की गारंटी दी है, लेकिन सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दिए जाने की पूरी संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था फैसला इसके पीछे दलील दी जा रही है कि आरक्षण की 50 की मर्यादा बढ़ाने का अधिकार सिर्फ संसद को है। जब तक संसद कानूनी तौर पर यह मर्यादा नहीं बढ़ती है तब मराठाओं को मिले 10 फीसदी आरक्षण पर तलवार लटकती रहेगी। सरकार की तरफ से दलील की गई है कि उसने राज्य सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही आरक्षण दिया है। अगर सच में मराठाओं को 10 फीसदी के आरक्षण की कानूनी परीक्षा में सीएम एकनाथ शिंदे पास हो जाते हैं तो वह निश्चित तौर पर फडणवीस से आगे निकल जाएंगे। 2018 में फडणवीस ने भी SEBC (Socially and Educationally backward class) ACT के हिसाब से ही आरक्षण दिया था। 27 जून, 2019 को हाईकोर्ट ने आरक्षण को बरकरार रखा था लेकिन आरक्षण की सीमा 16 से 12 फीसद शिक्षा और 13 फीसदी नौकरियों में कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले (मराठा आरक्षण अधिनियम ) को रद्द करके हुए उसे असंवैधानिक करार दिया था। बाकी है सरकार की कानूनी परीक्षा कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने मराठा समुदाय को जो 10 फीसदी आरक्षण दिया है। उसे चुनौती दिए जाने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सही ठहराना पड़ेगा। कमीशन की रिपोर्ट जिसमें मराठाओं को पिछड़ा माना गया है। उस रिपोर्ट की कसौटी की जांच होगी। कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि रिपोर्ट का आधार देकर सरकार अपने फैसले को सही ठहरा सकती है लेकिन देखना होगा कि कोर्ट का क्या रुख रहता है। शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ने होने का हवाला देकर दिया है, लेकिन इसके लिए संविधान संशोधन नहीं हुआ है। 72 फीसदी पहुंचा आरक्षण राज्य में आरक्षण 50 फीसदी की सीमा को पार कर अब कुल 72 फीसदी हो गया है। सरकार के नए बिल के मुताबिक मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। महाराष्ट्र में अब तक अनुसूचित जाति के लिए 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 19 प्रतिशत, अनुसूचित जाति और घुमंतू जनजाति के लिए 11 प्रतिशत और विशेष पिछड़ा वर्ग के लिए 2 प्रतिशत आरक्षण था। यह संयुक्त आंकड़ा 52 फीसदी था।अब इसमें 10 फीसदी मराठा आरक्षण जोड़ दिया गया है। इससे राज्य में आरक्षण 62 फीसदी तक पहुंच गया है। यदि इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को शामिल कर लें तो आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 72 प्रतिशत हो जाता है। सीएम शिंदे क्यों दे रह हैं गारंटी? सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि मराठा आरक्षण के अदालतों में कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरने के पिछले अनुभवों को देखते हुए इस बार पिछली गलतियों को दूर कर लिया गया है। इसी के तहत राज्य सरकार ने विधेयक पेश करते समय एक विशेष रणनीति तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मराठा समुदाय को दिया गया आरक्षण असाधारण परिस्थितियों के कारण उचित है। साथ ही जाति के नाम पर दिया गया आरक्षण अदालत में टिक नहीं पाता, लेकिन एक वर्ग विशेष को दिया गया आरक्षण टिकेगा। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह रुख अपनाया है कि हम वर्ग को आरक्षण दे रहे हैं, समाज को नहीं।


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