'17 महीने vs 17 साल' बना नीतीश की नाराजगी की वजह! तेजस्वी न समझ सके बात, चली गई महागठबंधन सरकार

पटना: बिहार में सियासी खेल का पटाक्षेप हो गया है। जेडीयू और बीजेपी समेत एनडीए के तीन घटक दलों ने की नैया पार लगा दी। नीतीश ने विश्वासमत हासिल कर लिया। स्पीकर अवध बिहारी चौधरी को अविश्वास प्रस्ताव लाकर सत्ताधरी एनडीए ने हटा दिया। भाजपा और जेडीयू के जिन विधायकों ने दगाबाजी की और व्हिप के बावजूद सदन में नहीं आए या देर से येन केन प्रकारेण पहुंचे, उनकी पहचान दोनों दलों ने कर ली है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और बिहार के डेप्युटी सीएम सम्राट चौधरी ने दगाबाज विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की बात भी कही है। उनसे अलग-अलग अंदाज में बदला साधने की कोशिश भी शुरू हो गई है। जेडीयू विधायक बीमा भारती के पति-बेटे समेत नौ लोगों की गिरफ्तारी को इसी कड़ी में देखा जा रहा है। विधायकों की गुमशुदगी और अपहरण के केस भी दर्ज किए जा रहे हैं। नीतीश ने विश्वासमत जीतने के बाद आरजेडी के मंत्रियों पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकारी पैसे की लूट हो रही थी। सबकी जांच कराएंगे। किसी को छोड़ेंगे नहीं। आरजेडी से कल तक की दोस्ती इस कदर अचानक दुश्मनी में बदल जाएगी, ऐसा किसी ने सोचा नहीं था। इसके मूल में बड़े पैमाने पर बिहार में हो रही नियुक्तियां हैं।

अपने गिरेबान में झाकें नीतीश

सीएम नीतीश कुमार आरजेडी पर आरोप पहली बार नहीं लगा रहे हैं। जब-जब वे आरजेडी के साथ जाते हैं, उनका याराना पारिवारिक माहौल में बदल जाता है। आरजेडी सुप्रीमो के साथ वे बड़े और छोटे भाई का रिश्ता बना लेते हैं। लालू के दोनों बेटे अचानक उनके प्रिय हो जाते हैं। साथ छोड़ते ही उन्हें 'जंगलराज' की याद आने लगती है। आरजेडी नेताओं के भ्रष्टाचार और लूट की जानकारी उजागर करने लगते हैं। आरजेडी में उन्हें तमाम तरह की खामियां नजर आने लगती हैं। ऐसा कहते समय वे भूल जाते हैं कि आरजेडी के पास वे जाते हैं, वह उन्हें बुलाने नहीं आता। वे अपनी सुविधानुसार कभी भाजपा तो कभी आरजेडी के साथ आते-जाते रहे हैं। उन्हें किसी पर दोष मढ़ने के पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।

क्रेडिट की जंग में टूटा रिश्ता

यह बात अब छिपी नहीं है कि आरजेडी से नीतीश ने इस बार अलग होने का फैसला क्यों किया। आरजेडी ने उनकी जितनी फजीहत इस बार कराई, शायद अब तक के राजनीतिक जीवन में इतने खराब दिन उन्हें नहीं देखने को मिले होंगे। 'पलटू चाचा' से सिर्फ 'चाचा' बना कर लालू के लाल तेजस्वी ने अपनी बातें उनसे मनवानी शुरू कीं। सिर्फ 17 महीने के साथ में आरजेडी ने नीतीश को 10 लाख नौकरियों के अपने वादे को पूरा कराना शुरू कर दिया। शिक्षकों समेत तीन लाख से ज्यादा नियुक्तियां सरकार ने की तो इसका श्रेय को जाता है। इसलिए कि तेजस्वी ने जब सरकार बनने पर 10 लाख रोजगार का वादा किया था, तब नीतीश कुमार उनकी खिल्ली उड़ा रहे थे। कह रहे थे कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा। अचानक इतना पैसा अब कहां से आ गया है कि उन्होंने शिक्षकों, सिपाहियों और तमाम तरह की नियुक्तियों का अभियान शुरू कर दिया।

17 साल बनाम 17 माह खटका

नीतीश को सबसे अधिक तकलीफ इस बात से हुई कि उनके 17 साल के शासन पर तेजस्वी ने सवाल उठा दिए। पटना में लगे आरजेडी के पोस्टरों में बताया गया कि जो काम 17 साल में नहीं हो सका, वह महागठबंधन की सरकार ने 17 माह में कर दिया। उनके कहने का आशय साफ था कि नियुक्तियों का जो सिलसिला महागठबंधन सरकार ने शुरू किया, वह आरजेडी की देन है। आरजेडी की वजह से ही युवकों को इतने बड़े पैमाने पर नौकरियां दी गईं। सिर्फ 100 दिनों में तीसरी बार शिक्षक नियुक्ति का विज्ञापन निकला। दो लाख से ऊपर नियुक्तियां भी हो गई। नियोजित शिक्षकों को सरकारी दर्जा देने का फैसला हुआ। कोई माने न माने, पर पब्लिक के बीच भी यह परसेप्शन बना है कि तेजस्वी के कारण नौकरियों का इतना बड़ा अवसर बिहार में लोगों को मिला।

बिहार में बंट रहीं हैं नौकरियां

जाति के जकड़न में उलझे बिहार में सुखद बात यह है कि अब रोजी-रोजगार की चर्चा होने लगी है। चाहे यह सिलसिला तेजस्वी यादव की देन हो या नीतीश के सात निश्चय पार्ट 2 का हिस्सा, पर इतना तो तय है कि नौकरियों पर बिहार की राजनीति टिक गई है। पहली बार ऐसा हो रहा कि महागठबंधन के नेता हों या एनडीए के सीएम, सभी जाति से परे जाकर अब नौकरी की बात करने लगे हैं। किसकी वजह से स्थिति में यह बदलाव हुआ है, इसका श्रेय लेने की कोशिश दोनों ओर से हो रही है। महागठबंधन सरकार के दौरान 70 दिनों में में दो लाख से अधिक शिक्षक नियुक्त हुए। तेजस्वी इसे अपनी उपलब्धि बताते रहे हैं। एनडीए की सरकार नियुक्तियों का सिलसिला जारी रखते हुए बताने की कोशिश कर रही है कि यह सरकार की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है। यही वजह है कि एनडीए की सरकार बनते ही 15 दिनों के भीतर तीसरे चरण में 87 हजार शिक्षकों की नियुक्ति का विज्ञापन प्रकाशित कराया गया है। हजारों नए पद विभिन्न विभागों में सृजित किए गए हैं। नीतीश यह साबित करना चाहते हैं कि नौकरियां उनकी ही वजह से मिल रही हैं।


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