यूपी में जातीय समीकरण साधने वाली सात सीटों पर RLD की दावेदारी, आधिकारिक घोषणा अभी तक नहीं
सूर्य प्रकाश शुक्ल, लखनऊ : लोकसभा चुनावों के लिए सपा का रालोद के साथ गठबंधन तो हो गया लेकिन रालोद किन सीटों पर लड़ेगा इसकी अभी अधिकृत घोषणा नहीं हुई हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि रालोद ने मथुरा, हाथरस, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, बागपत, अमरोहा और कैराना से चुनाव लड़ने का दावा सपा प्रमुख के सामने किया है। यह सातों सीटें रालोद की दबदबे वाली हैं। इन सीटों पर रालोद का जातीय समीकरण भी ठीक बैठता है। रालोद पहले भी इन सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है। हालांकि इनमें अधिकांश सीटों पर रालोद गठबंधन में ही जीता है।मथुरा: मथुरा लोकसभा सीट 1991 से 1999 तक भाजपा जीती थी। 2004 में कांग्रेस ने यह सीट भाजपा से छीनी। 2009 के चुनाव में रालोद प्रमुख चौधरी जयंत सिंह इस सीट से लोकसभा पहुंचे। उसके बाद से इस सीट पर भाजपा काबिज है। अब हेमा मालिनी यहां से सांसद हैं। इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोट काफी मजबूत स्थिति में है।हाथरस: हाथरस लोकसभा सीट की बात करें, तो यह सीट मुस्लिम, जाट और दलित बाहुल्य मानी जाती है। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इस सीट पर भी 1991 के बाद से भाजपा का दबदबा रहा है। 2009 में इस सीट पर भाजपा के साथ गठबंधन में आरएलडी जीती थी।बिजनौर: मुस्लिम और दलित बाहुल्य बिजनौर सीट 1971 तक कांग्रेस के कब्जे में रही। 1977 और 1980 में जनता दल यहां से जीता। 1984 में कांग्रेस के गिरधारी लाल और उनकी मृत्यु के बाद 1985 के उपचुनाव में मीरा कुमार यहां से चुनाव जीती। इस उप चुनाव में मायावती और रामविलास पासवान भी मैदान में थे। 1989 में मायावती यहां से चुनाव जीतीं। 1989 के बाद इस सीट पर सात चुनाव में चार बार भाजपा, दो बार रालोद और एक बार सपा चुनाव जीती। 2004 में रालोद-सपा के साथ गठबंधन कर और 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन कर यह सीट जीत चुकी है।बागपत: बागपत सीट रालोद का गढ़ मानी जाती रही है। इस सीट से पहले चौधरी चरण सिंह चुनाव जीतते रहे। फिर चौधरी अजित सिंह इस सीट से तीन बार सांसद रहे। हालांकि 2014 के बाद से यह सीट भाजपा के पास है।कैराना: कैराना की बात करें, तो मुस्लिम और जाट बाहुल्य इस सीट के मतदाता हर बार यहां राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण फेल करते रहे हैं। कैराना सीट लगातार किसी दल के पास भी नहीं रही। हालांकि, रालोद इस सीट पर तीन चुनाव जीत चुका है। 1999 और 2004 के आम चुनाव में रालोद ने इस सीट पर मैदान मारा। फिर 2018 के उपचुनाव में इस सीट पर सपा और रालोद के गठबंधन से तबस्सुम हसन चुनाव जीती। वह नेता सपा की थीं लेकिन चुनाव में उन्हें सिंबल रालोद का मिला था।मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट जाटलैंड कही जाती है। हालांकि 2014 से यह सीट भाजपा के पास है। 1991 में चौधरी अजित सिंह इस सीट पर पहला चुनाव लड़े थे। फिर, 2009 में भाजपा के साथ चुनाव लड़ी रालोद नेता अनुराधा चौधरी यहां से सांसद बनी। 2019 में चौधरी अजित सिंह इस सीट पर बुरी तरह से हार गए थे।अमरोहा: रालोद ने जिस अमरोहा सीट पर अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है, वह अमरोहा लोकसभा सीट कभी किसी दल का गढ़ नहीं रही। दलित, सैनी और जाट बाहुल्य इस लोकसभा सीट पर बीस फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। 2004 के चुनाव में इस सीट पर पहली बार रालोद जीती और देवेंद्र नागपाल हैंडपंप के सिंबल पर संसद पहुंचे। वर्तमान में यह सीट बसपा के पास है।
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