नीतीश कुमार क्या फिर बदलेंगे पाला? इंडी अलायंस में अच्छे दिनों की उम्मीद टूटने के बाद चौंकाने की आशंका

पटना: बिहार के सीएम अपनी पलटी मार राजनीति का एक बार फिर परिचय दे दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। विपक्ष के 28 दलों को लेकर बने इंडी अलायंस में जिस तरह नीतीश की उपेक्षा होती रही है और ऐसी उपेक्षाओं पर जैसी उनकी पलटी मारने की आदत रही है, उसे देखते हुए राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि जेडीयू कार्यकारिणी की 29 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली बैठक के बाद नीतीश अपना अगला कदम बढ़ा सकते हैं। हालांकि नीतीश कुमार को राहुल गांधी ने फोन कर मनाने की कोशिश जरूर की है, लेकिन ये भी तय है कि नीतीश के दिल से दिल्ली बैठक की टीस खत्म नहीं होने वाली, क्योंकि ये उनके लिए बड़े झटके जैसा रहा।

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से अनबन की अटकलें

माना जा रहा है कि नीतीश कुमार पहले अपनी पार्टी के लोगों से रायशुमारी करेंगे कि आरजेडी की वजह से उनकी संसदीय सीटों में कटौती करनी पड़ सकती है। अगर ऐसा होता है तो पार्टी को कौन-सा कदम उठाना चाहिए। विश्लेषक यह भी मानते हैं कि इस बार नीतीश अपने मन से पलटी मारने का फैसला नहीं लेंगे। इसमें वे अपनी पार्टी जेडीयू के नेताओं को भी शामिल करना चाहते हैं। जेडीयू में यह आम धारणा बन गई है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह की आरजेडी से नजदीकी बढ़ गई है। जेडीयू अध्यक्ष होने के बावजूद ललन सिंह के मन में आरजेडी के प्रति सॉफ्ट कार्नर है। नीतीश के सामने बड़ा संकट यह है कि ललन सिंह को अगर उन्होंने दरकिनार किया तो कमान किसे सौंपेंगे। विजय चौधरी, अशोक चौधरी और संजय झा से नीतीश की नजदीकियां इशारा करती हैं कि इनमें से किसी एक को पार्टी की कमान वे सौंप सकते हैं। एक कयास तो .यह भी लगाया जा रहा है कि पूर्व की भांति नीतीश पार्टी की कमान आधिकारिक तौर पर अपने ही पास रखें।

नीतीश कुमार की I.N.D.I.A से नाराज होने की वजहें क्या ?

नीतीश कुमार विपक्षी एकता के सूत्रधार रहे हैं। इंडी अलायंस बनने के बाद से ही उन्हें दरकिनार किया जाता रहा है। विपक्षी अलायंस की अब तक चार बैठकें हुई हैं, लेकिन न नीतीश की बात सुनी जाती है और न उनकी सलाह मानी जाती है। इससे वे बेहद नाखुश हैं। हालांकि इंडी अलायंस में शामिल आरजेडी और जेडीयू का प्रदेश नेतृत्व नीतीश की नाराजगी से इनकार करता रहा है। नीतीश की नाराजगी की तीन प्रमुख वजहें बताई जाती हैं। पहला यह कि इंडी अलायंस की दिल्ली में हुई चौथी बैठक के लिए लालू यादव और तेजस्वी यादव एक साथ निकले तो नीतीश कुमार अकेले गए। पहले तीनों साथ आते-जाते रहे हैं। दूसरा कारण कि बैठक समाप्ति पर नीतीश, लालू और तेजस्वी यादव बिना मीडिया ब्रीफिंग में हिस्सा लिए खिसक लिए। तीसरी वजह कि बैठक समाप्ति के 36 घंटे बाद भी नीतीश या लालू घराने से बैठक के बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि नीतीश ने अपनी ओर से नाराजगी की बात कभी नहीं कही है, लेकिन उनकी चुप्पी से नाराजगी का संकेत तो मिल ही रहा है।

नीतीश के सामने I.N.D.I.A में उपेक्षा के अलावा भी मुश्किलें

ऐसा नहीं है कि इंडी अलायंस में संयोजक नहीं बनाए जाने या पीएम की रेस में कोई नामलेवा नहीं मिलने से ही नीतीश नाराज हैं। उनकी नाराजगी के दूसरे कारण भी हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण आरजेडी के साथ सीटों का तालमेल का नहीं बैठना भी है। आरजेडी नीतीश से कम सीटें लोकसभा चुनाव में नहीं चाहता तो जेडीयू को अपने सिटिंग सांसदों से कम सीटें नहीं चाहिए। आरजेडी टिकट बंटवारे में विधायकों की संख्या को आधार बनाना चाहता है, जबकि जेडीयू सिटिंग सांसदों को। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव से नीतीश की ट्यूनिंग इन दिनों अच्छी नहीं चल रही है। पूर्वी क्षेत्र परिषद की पटना में पिछले दिनों नीतीश-तेजस्वी शामिल हुए थे। उसके बाद दोनों एक दूसरे से कटे-कटे रहने लगे हैं। यहां तक इन्वेस्टर्स मीट में तेजस्वी शामिल नहीं हुए। लालू भी पहले नीतीश के घर अचानक पहुंच जाते थे तो नीतीश भी वक्त-बेवक्त लालू से मिलने राबड़ी देवी के आवास जाने में संकोच नहीं करते थे। पिछले कुछ दिनों से यह सिलसिला भी थम गया है।

सीटें घटने की स्थिति में JDU को एकजुट रख पाना कठिन

नीतीश कुमार को पता है कि अगर उनकी पार्टी को पिछली बार से कम सीटें मिलीं तो जेडीयू का टूटना तय है। भाजपा ने पहले से ही जेडीयू कोटे की 17 सीटें खाली रखी हैं। अभी बीजेपी में उम्मीदवार चयन की जो कवायद चल रही है, उसमें उसकी जीतीं 17 सीटें ही शामिल हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि सीटों के बंटवारे में सहमति न बन पाने की स्थिति में जेडीयू सांसद भाजपा की ओर भागेंगे और उन्हें एकोमोडेट करने की नैतिक जिम्मेवारी भाजपा की होगी। इसलिए नीतीश कुमार की जीती सीटों पर बीजेपी अपने जिताऊ उम्मीदवार तलाशेगी। जेडीयू-आरजेडी के कुछ विधायक भी लोकसभा का चुनाव लड़ने को बेताब हैं। ऐसे लोगों में आरजेडी के सुनील कुमार सिंह, जेडीयू के महेशवर हजारी जैसे लोगों के नाम गिनाए जाते रहे हैं। नीतीश कुमार को इस बात का एहसास भी है। तभी तो महागठबंधन विधायक दल की बैठक में उन्होंने सुनील कुमार सिंह की बखिया उधेड़ दी थी। बताते हैं कि नीतीश ने महेश्वर हजारी की भी अलग से क्लास ली थी। नीतीश कुमार ऐसी स्थिति आने से पहले ही अपने कील-कांटे दुरुस्त कर लेना चाहते हैं।

नीतीश कुमार इंडी गठबंधन से अलग हुए तो संभावनाएं क्या?

कभी नीतीश कुमार के काफी करीब रहे और अभी जनसुराज यात्रा पर बिहार का भ्रमण कर रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अक्सर कहते हैं कि नीतीश कुमार फिर पलटी मारेंगे। वे दावा करते हैं कि हरिवंश जैसे कुछ नेताओं को नीतीश ने अपने एजेंट के तौर पर पहले से ही बीजेपी के साथ लगा रखा है। अगर नीतीश एनडीए में लौटते हैं तो सीटों को लेकर कोई समस्या शायद ही सामने आए। भाजपा सिर्फ एक शर्त नीतीश के सामने रख सकती है कि सीएम का मौजूदा कार्यकाल वे भले पूरा कर लें, लेकिन 2025 का कार्यकाल भाजपा के लिए छोड़ दें। नीतीश को इस पर कोई आपत्ति इसलिए नहीं हो सकती है कि आरजेडी के साथ जाने के बाद उन्होंने खुद 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने की घोषणा कर रखी है। इंडी अलायंस का केंद्र की सत्ता में आना तय नहीं, लेकिन नरेंद्र मोदी की वापसी सर्वेक्षणों में पक्की मानी जा रही है। ऐसे में सीएम की कुर्सी छोड़ने के बाद नीतीश को बीजेपी कम से कम राज्यपाल तो बना ही सकती है।

इंडी अलायंस छोड़ने के लिए नीतीश के पास कई बहाने

नीतीश कुमार को जब भी किसी का साथ छोड़ना होता है तो वे माकूल बहाने तलाश लेते हैं। वर्ष 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ इसलिए छोड़ा था कि डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई ने जांच शुरू कर दी थी। उन्होंने इसी बहाने आरजेडी का साथ छोड़ा था। अब तो तेजस्वी चार्जशीटेड हो गए हैं। ईडी ने भी उन्हें जमीन के बदले नौकरी (Land for Job) मामले में पूछताछ का समन जारी कर दिया है। सीटों के बंटवारे की खिचखिच तो है ही। इंडी अलायंस ने नीतीश के योगदान को भी भुला दिया है। ऐसे में उनकी कोशिश यही होगी कि इन्हीं बातों को मुद्दा बना कर वे आरजेडी का साथ छोड़ दें।


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