बिहार में IAS तो बहुत मगर केके पाठक इकलौते! नाम ही काफी है, ऐसा क्यों?
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पटना: बिहार के नए टीचरों के लिए IAS KK Pathak कितना चिंतित हैं। लाखों स्कूल शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की तरह है। हजारों करोड़ की बजट इन पर राज्य सरकार खर्च करती है। बड़े पैमाने पर नियुक्तियां चल रही है। मतलब, एक गड़बड़ी का आरोप और पूरा करियर तबाह। शायद यही वजह है कि कोई भी IAS रिस्क लेने से बचता है। सेफ गेम खेलने में लगे रहते हैं। मगर, जो रिस्क उठाने की काबिलियत रखता है, जो डेयर करता है, वो फिर केके पाठक बन जाता है।
यूं हीं कोई नहीं बन जाता केके पाठक
बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के एक्शन पर शुरू में चाहे जितनी सियासी बयानबाजी हुई, मगर उस माता-पिता से पूछिए जिसका बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता है, उसके पास केके पाठक से जुड़ी दर्जनों कहानियां है। उस बेरोजगार से पूछिए जिसके माथे का बाल कॉम्पिटिशन की तैयारी करते-करते झड़ गए। किसी तरह एक सरकारी नौकरी मिल जाए, इसकी तैयारी में उसकी आधी उम्र गुजर गई।केके पाठक ने बंद कर दी 'बयानवीरों' की जुबान
एक लाख 20 हजार शिक्षकों की नियुक्ति हो गई। एक लाख 22 हजार की होने जा रही है। वो भी बिल्कुल तय समय सीमा के भीतर। किसी ने उंगली नहीं उठाई, वो भी बिहार जैसे राज्य में, जहां बात-बात पर करप्शन हिलोरे मारने लगता है। ऐसा लगता है कि बिहार में बिना घूस दिए कुछ हो ही नहीं सकता। मगर, केके पाठक ने इतिहास रच दिया। अपनी काबिलियत से सबको चुप करा दिया। अब उनके बारे में बोलने में 'बयानवीर' भी सौ बार सोचते हैं।IAS केके पाठक बनने के लिए बहुत कुछ करना होगा
सुबह से शाम तक बिहार के स्कूलों का केके पाठक खाक छानते हैं। शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके से लेकर छात्र-छात्राओं के टॉयलेट की सुविधा तक की मुआयना करते हैं। ऑन द स्पॉट निर्देश जारी करते हैं। एक-एक चीज का बारीक मुआयना करते हैं। इससे पता चलता है कि सरकार के पास कितने संसाधन हैं। अगर, उसका ठीक तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो प्राइवेट वाले पानी मांगने लगेंगे। मगर, उसके लिए अफसरों को सैकड़ों किलोमीटर की सफर करनी होगी। मलीन बस्ती में जाना होगा। अपने से कम पढ़े-लिखे लोगों से बातचीत करनी होगी। मगर, अपनी इनोवा और फॉर्च्युनर में सफेद तौलिए पर IAS बैठा रहेगा तो केके पाठक कैसे बनेगा?from https://ift.tt/q8XJQxA
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