अमरक म मरटवदय क जत आरकषण क हर सपरम करट क वह फसल ह जसन तड दय ओबम क दल

वॉशिंगटन: अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आए एक फैसले की हर तरफ चर्चा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक फैसले में यूनिवर्सिटीज में नस्‍ल के आधार पर होने वाले एडमिशन को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अब नस्‍ल को किसी कॉलेज में एडमिशन का आधार नहीं माना जाएगा। इस ऐतिहासिक फैसले को अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। जहां राष्‍ट्रपति जो बाइडन इस फैसले से असहमत हैं तो वहीं उनके एक्‍स-बॉस और पूर्व राष्‍ट्रपति बराक ओबामा का दिल टूट गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही कोई ने दशकों से चली आ रह नीतियों को खत्‍म कर दिया है।14वें संशोधन का उल्‍लंघन सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विश्वविद्यालयों में नस्ल-आधारित एडमिशन सिस्‍टम के उपयोग को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करने का फैसला सुनाया है। द हिल के मुताबिक फैसले से कॉलेजों में सकारात्मक कार्रवाई को एक महत्वपूर्ण झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय और चैपल हिल (यूएनसी) में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय की परंपराओं को खारिज कर दिया। इसके तहत कभी-कभी किसी व्यक्ति के स्कूल में एडमिशन के दौरान नस्‍ल को सबसे बड़ा कारक माना जाता था। अदालत ने दो अलग-अलग फैसलों में कहा कि ये प्रथाएं 14वें संशोधन में दिए गए समान सुरक्षा की गारंटी का उल्लंघन करती हैं।'हमनें नहीं दी अनुमति' चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने दो विश्वविद्यालयों की नस्ल-आधारित प्रवेश परंपराओं को खारिज करने के लिए अदालत की राय ली थी। रॉबर्ट्स ने बहुमत से मिली राय के बाद फैसला दिया। उन्‍होंने कहा, दोनों कार्यक्रमों में पर्याप्त रूप से केंद्रित और मापने योग्य उद्देश्यों की कमी है, जो नस्ल के उपयोग की गारंटी देते हैं, अपरिहार्य रूप से नस्ल को नकारात्मक तरीके से नियोजित करते हैं, इसमें नस्लीय रूढ़िवादिता शामिल है, और तार्किक बिंदुओं की कमी है।' उन्होंने आगे कहा, 'हमने कभी भी एडमिशन प्रोग्राम को इस तरह से चलाने की अनुमति नहीं दी है और हम आज भी ऐसा नहीं करेंगे।' उन्‍होंने आगे कहा, 'दूसरे शब्दों में, छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए - नस्ल के आधार पर नहीं।'क्‍या हैं फैसले के मायने उनका कहना था कि विश्वविद्यालयों ने बहुत लंबे समय से इसके विपरीत काम किया है। हालांकि चीफ जस्टिस रॉबर्ट्स ने यह भी कहा कि 'इस राय में ऐसा कुछ भी नहीं माना जाना चाहिए जो यूनिवर्सिटीज को आवेदक की इस चर्चा पर विचार करने से रोकता है कि नस्ल ने उसके जीवन को कैसे प्रभावित किया है।' फैसले के बाद अब छात्र अपनी जाति को इंगित करने के लिए कॉलेज आवेदन पर सीधे एक बॉक्स में टिक नहीं कर पाएंगे। लेकिन अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि उन्हें इसे छिपाने की भी जरूरत नहीं है। निबंधों और इंटरव्‍यू के लिए नस्ल और जातीय पृष्ठभूमि की मान्‍यता बरकरार रहेगी।श्‍वेत और एशियाई छात्रों पर असर हार्वर्ड और यूएनसी दोनों में एडमिशन प्रॉसेस था जो आवेदकों के बीच नस्‍ल को एक निर्णायक कारक बनाने वाली थी। दोनों मामलों में चुनौती देने वालों ने कहा कि इसका श्‍वेत और एशियाई अमेरिकी छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला रूढ़िवादी कानूनी रणनीतिकार एडवर्ड ब्लम की तरफ से शुरू की गई एक दशक चली लंबी लड़ाई का अंत है। उन्होंने स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन (एसएफएफए) की शुरुआत की और इसके लिए मुहिम शुरू की थी। सर्वोच्च न्यायालय कई वर्षों से पिछले निर्णयों में प्रत्यक्ष जाति-आधारित प्रवेश के उपयोग को सीमित करता आ रहा है। बराक ओबामा दुखी साल 2003 में हाई कोर्ट ने ग्रुटर मामले में फैसला सुनाया गया था। इसके तहत 14वें संशोधन ने एडमिशन में जाति के अनुरूप उपयोग की अनुमति दी। मगर यह भी एक समयरेखा निर्धारित करता है कि यह कितने समय तक चलेगा। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्‍नी मिशेल इस फैसले से काफी आहत हैं। उन्‍होंने ट्विटर पर अपना दुख जाहिर किया है। उनका मानना था कि ये नीतियां यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक थीं कि नस्ल या नस्ल की परवाह किए बिना सभी छात्रों को सफल होने का अवसर मिले।


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