जब जप म रट लदकर बटन नकल थ अटल कय फर वस ह अकल क महन पर बहर?

पटना: क्या बिहार फिर सुखाड़ (Bihar Drought News) की त्रासदी झेलते हुए अकाल की गिरफ्त में आ जाएगा? मौसम विभाग की ओर से जारी जो सूचनाएं हैं वह इशारा तो इसी ओर कर रही। खास कर तब जब बिहार में मानसून की गतिविधियां कमजोर पड़ गई हैं। मौसम विभाग ने अपने पूर्वानुमान में कहा है कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण मानसून की सक्रियता में आई कमी से इस महीने राज्य के अधिकतर भागों में अच्छी बारिश के आसार नहीं हैं। बिहार के कई जिलों में बीते दो-तीन दिनों में बारिश नहीं होने से अधिकतम तापमान में इजाफा हुआ है। पूरे जून महीने में राज्य के 37 जिलों में सामान्य से कम बारिश (Bihar Rain Update) होने की संभावना है।

मौसम की बेवफाई क्या रंग लाएगी?

बिहार के 37 जिलों में 1 से 26 जून तक सामान्य से काफी कम बारिश हुई। कुछ जिलों में तो 90 फीसदी से भी कम बरसात की जानकारी है। नतीजा ये हुआ कि इस बार धान की रोपनी पूरी तरह से प्रभावित हो सकती है। हालांकि जुलाई तक विभिन्न जिलों में बारिश की संभावना है। इसे लेकर मौसम विभाग की ओर से अलर्ट भी जारी किया गया है। लेकिन कई इलाकों में अभी मौसम शुष्क रहने का अनुमान है। जिसके कारण अधिकतम तापमान में भी बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में अगर जुलाई में मौसम की बेवफाई सामने आई तो राज्य का अधिकांश जिला अकाल से जूझता नजर आएगा।

1967 के अकाल की भयावहता

1967 के दौरान बिहार भयावह अकाल की स्थिति से गुजर चुका है। सूखे के चलते खाद्यान्न का वार्षिक उत्पादन 1965-1966 में 7.5 मिलियन टन से घटकर 1966-1967 में 7.2 मिलियन टन हो गया था। 1966-1967 में इसमें और भी अधिक गिरावट आई और यह 4.3 मिलियन टन रह गई। राष्ट्रीय अनाज उत्पादन 1964-1965 में 89.4 मिलियन टन से गिरकर 1965-1966 में 72.3 हो गया। इस दौरान 19 फीसदी तक की गिरावट आई। अनाज उत्पादन की इस गिरावट ने राज्य को खाद्य और अनाज संकट के मुहाने उतार दिया।

प्रभाव बड़ा कष्टकारी हुआ

कम उत्पादन के कारण खाद्यान्न की कीमतों में भारी वृद्धि हुई। नतीजतन गरीबी और सूखे की मार के चलते अपनी जिंदगी बचाने को लोग पलायन करने पर मजबूर हो गए। कहते हैं जो रह गए वो पेड़ के पत्ते चबाने लग गए। यह तब हो रहा था जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सरकार और स्वैच्छिक संगठनों की ओर से राहत उपायों के जरिए अकाल के प्रभाव को सीमित करने का काम किया जा रहा था।

अकाल से भी जूझे थे जेपी

अकाल मौत जब बिहार में होने लगी तो जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने बिहार रिलीफ कमिटी के नाम से एक संस्था गठित की। वो भूखी जनता के लिए निवाले के उपाय में जुट गए। उन्होंने देश दुनिया से अपील की। उनकी अपील की प्रतिक्रया में उन्हें काफी सामान, धन और जन सहयोग देश और विदेश दोनों से मिला। जेपी ने बहुत ही संगठित रूप से राहत कार्य की शुरुआत की। मनुष्य के जीवन की रक्षा के लिए फ्री खाने की व्यवस्था की। दलिया या खिचड़ी आदि बना कर उस समय प्रभावित लोगों खिलाया गया ताकि हर व्यक्ति के जीवन की रक्षा हो सके और कोई मरे नहीं। वहीं पशुओं के लिए चारा की भी व्यवस्था की गई।

अटल जी भी रहे थे गया में पांच दिन

1967 में बिहार जब अकाल की पीड़ा झेल रहा था तब ने भी भूखे गरीबों के बीच लगातार पांच दिन रहे। वे गया के वाराचट्टी, डोभी, मोहनपुर और इमामगंज डुमरिया के इलाके में रोज गया से आते थे। इस दौरान जीप से रोटी सब्जी लाद कर उनके बीच ले जाते थे। वे गया के गोदाम स्थित व्यापारियों से मदद लेकर उनकी हरसंभव सहायता करते थे। उन्होंने जाने के पहले एक व्यवस्था बना दी और गरीबों को भोजन जुटता रहा।

वर्तमान बिहार की स्थिति

वर्तमान बिहार खाद्य उत्पादन में अभी अग्रणी भूमिका में रहा है। कृषि रोड मैप के बाद हर तरह के अनाज के उत्पादन में वृद्धि हुई है। वैसे तो जुलाई का मौसम अभी किसानों की अंतिम इच्छा का घर बना हुआ है। गर जुलाई में भी बारिश नहीं होती है तो अनाज का संकट तो आएगा। हालांकि, बिहार 1967 के काल से बहुत आगे बढ़ चुका है। पानी के अभाव में कुछ मोटे अनाज की भी खेती की जाति है। दूसरी ओर बिहार स्वयं में एक ऐसा शक्तिशाली राज्य तो हो गया है जो दुर्भिक्ष को भी झेल सकता है।


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