कुढ़नी में आसान नहीं 'अपनों' से पार पाना... दांव पर नीतीश की यूएसपी, BJP-VIP भी परेशान
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Kurhani Upchunav 2022: कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव मुख्यमंत्री () के यूएसपी का लिटमस टेस्ट साबित होने जा रहा। लगातार चुनाव प्रचार के बाद भी यह संभव होते नहीं दिख रहा कि पार्टी का आधार वोट उन्हें पूरी तरह मिलने जा रहा। सबसे ज्यादा खतरा तो कुढ़नी में खड़े प्रमुख उम्मीदवारों को अपने वोटरों से ही है। चुनाव में जातीय समीकरण तो अभी दूर की कौड़ी है। हो यह रहा है कि प्रमुख उम्मीदवारों को अपनी ही जाति के वोट हासिल करने में एड़ी चोटी का पसीना बहाना पड़ रहा है। बीजेपी के कई कद्दावर नेता तो वोट गोलबंद करने को कुढ़नी में ही महीनेभर से कैंप किए हुए हैं। महागठबंधन (Bihar Mahagathbandhan) के उम्मीदवार को तो अब भरोसा 2 दिसंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के दौरे से बंधी है। 'अपनों' के बिखरने का डरकुढ़नी उपचुनाव में प्रचार का अंतिम फेज चल रहा है। ऐसे में माहौल काफी टकराहट वाला हो गया है। क्या बीजेपी, क्या जेडीयू यहां तक कि वीआईपी भी अपने वोट बैंक के बिखरने डर से घबराई हुई है। बीजेपी से इस बार केदार गुप्ता उम्मीदवार हैं। इन्हें सबसे ज्यादा खतरा बीजेपी के टेकन फॉर ग्रांटेड वोटर भूमिहार जाति से है। उम्मीदवार केदार गुप्ता कई चुनौतियों से गुजर रहे हैं। एक तो निषाद वोट बैंक जो वहां के सांसद अजय निषाद के कारण बीजेपी को मिलता है वह अभी साफ मूड में नजर नहीं दिख रहा। इसलिए परेशान है बीजेपीउधर, मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने बीजेपी के प्रति नाराजगी को उजागर कर अपना कैंडिडेट खड़ा कर दिया। वह भी भूमिहार जाति से हैं। नतीजा ये हुआ कि अगर ये दोनों वोटबैंक नहीं संभले तो पार्टी को परेशानी हो सकती है। बीजेपी के उम्मीदवार को एक पहल और करनी होगी भूमिहार और वैश्य को एक मंच पर मजबूती से लाकर खड़ा करना। अब तो चुनाव प्रचार 3 दिसंबर को खत्म हो जाएगा। इसके लिए बीजेपी को अपने आधार वोट पर फोकस करना होगा। जेडीयू को इस बात की टेंशन! कुढ़नी उपचुनाव में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड भी अपने उम्मीदवार के आचरण को लेकर थोड़ा परेशान है। पहला तो उनका कड़क स्वभाव उनकी टेंशन बढ़ा रहा। दूसरी परेशानी बीजेपी के कद्दावर नेता सम्राट चौधरी की इस क्षेत्र में ताबड़तोड़ फील्डिंग सजाना भी है। चर्चा है कि इनकी उपस्थिति से कुशवाहा वोट में बंटवारा हो सकता है। जेडीयू को एक परेशानी ये भी है कि आरजेडी के सीटिंग सीट का उसके हाथ से फिसल जाना। आरजेडी के इस उदासीनता का फायदा बीजेपी और एआईएमआईएम के उम्मीदवार को हो सकता है। गोपालगंज में बीजेपी को जीत एआईएमआईएम कैंडिडेट के खड़े होने से ही हासिल हुई थी। यहां भी ओवैसी की पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतारा है। ऐसे में नीतीश कुमार कैसे यहां अपने कैंडिडेट के समर्थन में माहौल बनाते हैं देखना दिलचस्प होगा। मुकेश सहनी की VIP भी परेशान हालांकि, वीआईपी ने भी भूमिहार जाति से उम्मीदवार देकर यह चाल चली है कि अगर भूमिहार और मल्लाह एक मंच पर आ जाएं तो पार्टी को एक मजबूत आधार वोटबैंक हो सकता है। हालांकि समीकरण दुरुस्त करने को 3 दिसंबर के शाम तक का समय है। लेकिन 2 दिसंबर को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक साथ प्रचार कर अपने मास्टर स्ट्रोक से क्या कुछ हासिल कर पाते हैं वह मतदान के दिन पता चलेगा।
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