इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि राजभाषा हिंदी को लेकर स्वाधीन भारत में जब भी कोई मुद्दा उछला, प्राय: नकारात्मक ही रहा। हिंदी कभी अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के विरोध में निशाने पर रही तो कभी उसे दक्षिणी राज्यों में कथित तौर पर थोपे जाने की प्रतिक्रिया में किनारे करने की कोशिश हुई। वह कभी सकारात्मक राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाई। ऐसे माहौल में अगर पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल में हिंदी और हिंदीभाषियों के मुद्दे केंद्र में हैं तो कहा जा सकता है कि हिंदी को लेकर कम से कम गैर हिंदीभाषी क्षेत्रों में जो अलहदापन का भाव था, उसमें बदलाव आ रहा है। from Navbharat Times https://ift.tt/2ZZ5yjJ